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Friday, October 15, 2010

मेरी ज़िन्दगी का तसव्वुर ,
मेरे हाथ की लकीरें
इन्हें काश तुम सवारतें
तो कुछ और बात होती
ये खुले कुहुलेय से गेसूं
इन्हें लाख तुम सवारों
मेरे हाथ से सवारतें
तो कुछ और बात होती
मैं तेरा आइना था मैं
मैं तेरा आइना हूँ
मेरे सामने सवरतें
तो कुछ और बात होती
अभी आँख ही लड़ी थी
ki गिरा दिया नज़र से
ये जो सिलसिले भी बड़ते तो
तो कुछ और बात होती
हमें अपनी ज़िन्दगी का
कुछ ग़म नहीं है लेकिन
तेरे आस्तां पे मरते
तो कुछ और बात होती
तो कुछ और बात hoti

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